शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2011

हिन्दुत्व और विश्वबंधुत्व


हिन्दु धर्म की जनसंख्या दुनिया में तीसरे स्थान पर और भारत में पहले स्थान पर है। लेकिन भारत में हिन्दुओ की हंमेशा से उपेक्षा होती रहती है। शायद ही ऐसा कोई देश होगा, जहा बहुमत को उसके अधिकार नहीं मिलते।

यद्यपि हिन्दुत्व ने हंमेशा विश्वबंधुत्व का साथ दिया है। "हिन्दु" शब्द भारत का प्राचिन शब्द नहीं है। "हिन्दु" शब्द अरब के राष्ट्रो ने दिया है और "ईन्डिया" युरोपीयन राष्ट्रो ने दिया है। हम सब जानते है, की हमारे देश का प्राचिनतम नाम "भारत" है। "हिन्दु" धर्म का प्राचिनतम नाम "सनातन/वैदिक धर्म" है।

विष्णु पुराण का श्लोक है,
उत्तरं यत्‌ समुद्रस्य हिमाद्वेश्चैव दक्षिणं ।
वर्षं तद्‌ भारतं नाम भारती यत्र संतति ॥
जो भूमि महासागर के उत्तर और हिमालय के दक्षिण में है, उसे भारत कहते है और वहा के लोगो को भारतीय कहते है।

हिन्दु धर्म की पवित्र धर्मग्रंथ, जिसका ज्ञान सीर्फ भारत के लिए सीमित नहीं है। यह सभी मनुष्यो पर समान तरीके से लागु होते है।

सत्य और अहिंसा भारत की प्राचिन परंपरा है। गौतम बुघ्घ और महात्मा गांघी, दोनो उसको मानते थे। यह सिध्धांत उनके नहीं, अतिप्राचिन है।

हिन्दुत्व हंमेशा "वसुधैव कुटुम्बकम्‌" (विश्व के सभी जीव एक ही परिवार के सदस्य है।) की भावना रखता आया है।

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