गुरुवार, 6 दिसंबर 2012

मेरी आज की रचना


हम सारे संसार को एक परिवार समजते है,
और सब सुखी हो उसकी कामना करते है |
यदि किसीने हम पर वक्रदृष्टि से देखा,
तो हम उसका अस्तित्व समाप्त कर देते है|

गर्व से कहो हम हिन्दू है, राम का मंदिर वही बनाएँगे|

लोग कहते है, "वसुधैव कुटुम्बकम्" सही नहीं है, कोई कहता है "सर्वे भवन्तु सुखिनः" ठीक नहीं है, तो कोई "धर्मो रक्षति रक्षितः" को सही नहीं मानते| लेकिन ये तीनो वाक्यांश सही है, यदि इसका एक सीमा तक आचरण किया जाए|

अतः मैंने इन तीनो वाक्यांशों को एक सुनिश्चित प्रणालीका में जोड़कर अपनी नई रचना बना दी|

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